हाल ही तो वे हरहरा रहे थे पितलाहट को जिगर में समेटे अभी अभी, उन्हें पन्नों मे दबाया मैंने उनकी सुगंध को सुखाते हुए कल जब कोई बेखयाली में किताब खोलेगा झड़ कर टूट जायेंगे वे ऐसे ही कई दोस्त, मरने के बाद दुबारा मर जायेंगे
हिंदी समय में रति सक्सेना की रचनाएँ
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कविताएँ